महिला सशक्तिकरण के निहितार्थ

महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आधी आबादी के जीवन के प्रत्येक पहलू यथा व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक क्षेत्रों में सशक्त अभिव्यक्ति से है, साथ ही बिना किसी लैंगिक व सामाजिक…

क्या होता अगर

अगर गुरूकुल में पढ़ना पढ़ाना नहीं होता..तो मालूम हमें वेदों का जमाना नहीं होता..रामभक्त हनुमान की कहानी हम सुनते नहीं..रामलीला में अभिनय दिखाना नहीं होता.. संग्राम के महाभारत की नौबत नहीं आती..शकुनि द्वारा चौसर खिलाना नहीं होता..कुरुवंश…

तकदीर

गैरों को छोड़ो कभी खुद से बात नहीं की..अपने आप से खुलकर मुलाकात नहीं की..जो किया सब दिल से किया..हमने कोई करिश्मा या करामत नहीं की.. हमला किया उन्होंने हमारे चैनो अमन पर..उनसे पहले हमने जंग की…

मातृभूमि

दोस्त सच्चा वही है इस दुनिया में..दोस्ती के खातिर जो जमाने से लड़ता है..मुल्क का असली सिपहसालार होता है वो..कुर्बान जो जां अपनी वतन के लिए करता है.. देश के लिए एक क्यों नहीं हो सकते हम…

दस्तूर

सौ गुना बढ़ जाती है खूबसूरती मुस्कुराने से..दूर रहते हैं कुछ लोग फिर भी हंसने हंसाने से..दूसरों की खुशी से खुश होते हैं जो भूलकर दुख अपना..हार नहीं सकते वो कभी भी जालिम जमाने से.. जो ईमान…

अरमान

गिरती बिजली देख आसमां से हैरान हो गया..तूफान और लहरों से इंसान परेशान हो गया..जब सुबह निकल पड़ी धूप पूजकर पत्थर को..सोचा उसने उस पर भगवान मेहरबान हो गया.. जहां जन्म लिया अधर्म से लड़ने के लिए…

आर पार

भटकता रहा ताउम्र मैं मंजिल दूर हो गई..तलाश में रास्ते की जां थक के चूर हो गई..इस नादान दिल को इसका इल्म न था..ख्वाब और हसरतें मेरी मेरा गुरूर हो गई.. करवटें बदल बदलकर तन्हां हो गई…

ख्वाहिश

Sahitya Sudha (साहित्यसुधा) ख्वाहिश वेबपत्रिका में आपका हार्दिक स्वागत है। साहित्यसुधा सभी हिंदी लेखकों तथा अध्यापकों हेतु एक खुला मंच है, जहाँ स्वयं को रजिस्टर करने के पश्चात आप अपनी कविताएँ, कहानियाँ, लेख आदि पोस्ट कर सकते…

मेरा संकल्प

चूम लूँ मैं मौत को अगर दुआ मेरी यह कबूल हो..राख मेरे तन की भारत मां के चरणों की धूल हो..खुशकिस्मत है कुर्बान होना मातृभूमि के लिए..हजार कांटों के बीच जैसे खिल गया एक फूल हो.. रास्ते…

पुस्तक समीक्षा – बॉयफ्रेंड ऑफ ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी

समकालीन परिदृश्यों में जन्म लेता साहित्य जब वेदना से संवेदना तक की यात्रा तय कर कल्पना के कोर में हिलोर भरते हुए यथार्थ के धरातल पर अपने पाँव रखता है तब उसके शब्द मानव मन के आँगन…

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