खुशियाँ कम अरमान बहुत हैं..लोग यहां परेशान बहुत हैं.. जीवन का उद्देश्य कुछ नहीं..चहुं ओर नादान बहुत हैं.. मानते हैं जायदाद स्त्रियों को..जिनका जग में सम्मान बहुत है.. तीसमारखां कहते खुद को..पद का उनको गुमान बहुत है..…
दुनिया बदल रही है जमाना बदल रहा है..इंसानी फितरत का फसाना बदल रहा है..नारियां सुरक्षित नहीं हैं अपने ही घरों में..महिलाओं के प्रति जमाना बदल रहा है.. खिलौना बना दिया है टीवी ने खूबसूरती को..घर के बाद…
हो अगर दलदल तो पग अपने जमाकर रखिये..हाथ मदद का सेवा को सब की बढ़ाकर रखिये..कौन कहता है पानी रुक नहीं सकता छलनी में..बर्फ बनने तक धीरज तो अपना बनाकर रखिये.. करीबी ही करते हैं पीठ में…
तजुर्बे से बात हमने अभी तक ये जानी है..जिन्दगी का हर पल बहता हुआ पानी है.. अम्बार दौलत का लगाकर तू करेगा क्या..मौत एक न एक दिन तो तेरी आनी है.. हो जा खड़ा छू ले तू…
तजुर्बे से बात हमने अभी तक ये जानी है..जिन्दगी का हर पल बहता हुआ पानी है..अम्बार दौलत का लगाकर तू करेगा क्या..मौत एक न एक दिन तो तेरी आनी है.. हो जा खड़ा छू ले तू मंजिल…
है भरोसा अगर तो फिर एतबार हो जाता है..छोड़कर रंजिश दुश्मन से भी प्यार हो जाता है..खोल देता है झोली अपनी जो गरीबों के लिए..धन दौलत का पास उसके अम्बार हो जाता है.. गुड़ से भी ज्यादा…
तुमसे रूठकर कोई नया शख्स मैंने पाया नहीं..तुम्हारे अलावा किसी को दिल में बसाया नहीं.. भटकते फिरे चाहत के लिए दरबदर कायनात में..तुमसे बेहतर आज भी हमें कोई नजर आया नहीं.. बहुत बेशुमार कारवाँ है हमारे कदरदानों…
औरत पहाड़ की मेहनत की मिसाल है..मुसीबत के वक्त परिवार की वह ढाल है.. स्वरूप नव दुर्गा का है वह मगर आज..मार पलायन की झेलता उस का लाल है.. करती है वह पशु पालन और खेती बाड़ी..झुकता…
एक टहनी एक दिन पतवार बनती है..एक चिंगारी दहक अंगार बनती है..रौंदी गई जो सदा बेबस समझकर..मिट्टी वही एक दिन मीनार बनती है.. तपाई जाती है भट्टी में जो दिनों तक..जुड़कर ईंट फिर दीवार बनती है..बोकर खेतों…
हार हो या जीत हो ना कभी भय भीत हो..जलालो दीप तब जब अंधकार प्रतीत हो.. दौड़कर प्रहार कर शत्रु का संहार कर..होंठों पर तुम्हारे सर्वदा विजय का गीत हो.. खुद को बलिष्ट कर पर इरादा पुनीत…