हार हो या जीत हो ना कभी भय भीत हो..
जलालो दीप तब जब अंधकार प्रतीत हो..
दौड़कर प्रहार कर शत्रु का संहार कर..
होंठों पर तुम्हारे सर्वदा विजय का गीत हो..
खुद को बलिष्ट कर पर इरादा पुनीत हो..
यह वाणी तुम्हारी हर हाल में विनीत हो..
तन मन और धन वतन पर कुर्बान कर..
पाप ना करूं कभी यही तुम्हारी रीत हो..
सदा सर्वदा तुम्हारी क्रोध पर जीत हो..
छोड़ मत हौसला अमन तुम्हारी प्रीत हो..
ना शोक कर हार का युद्ध की पुकार का..
तुम्हें सदा जय मिले भगवान जब मीत हो..
- नीरज चंद्र जोशी ..