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खुदा बचा कर रखे हमें इन तीन बलाओं से..
हकीमों से वकीलों से हसीनों की निगाहों से..
मुकर्रर होगी जन्नत तुझे अगर जिन्दगी भर तू..
रह सका जुदा जुर्मों, मुजरिमों और गुनाहों से..
अर्जी मुआवजे की रब मेरे मन्जूर होनी चाहिए..
सितम दिलरूबा ढ़ाए जब कातिल अदाओं से..
दौलत और शोहरत की प्यासी इस कायनात में..
लौटना मुश्किल है ऐश ओ आराम की पनाहों से..
बख्शीशों तोहफों के नजराने के बिना इस जमाने में..
नामुमकिन है जीतना दिल किसी का सिर्फ वफाओं से..
अपना जिस्म और जिगर फौलाद का बनाना पड़ता है..
गुजरना हो अगर दर्द से भरी कंटीली और कठिन राहों से..
- नीरज चंद्र जोशी..
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ज्योत्स्ना ज्योति
वाह क्या बात है