जिनके ऊपर खड़ा शिखर,जो पत्थर हैं बुनियाद के,
उड़ने से जिन्हें रोक न पाये, जालिम पंजे सैय्याद के।
कतरा कतरा खून से लिखे हिंद का वो भूगोल,
वो देश के सच्चे पूत,आज कलम उनकी जै बोल।
प्रशस्त किया था मार्ग जिन्होंने, रोका था जुल्मी तूफान,
अवरुद्ध किया मार्ग जुर्म का,राह खड़े थे सीना तान।
उनको ढूंढो आसमान में,जो इन तारों में खोये हैं,
जिनकी बदौलत हम घर में,आज चैन से सोये हैं।
हिला अंग्रेजी कुशासन,डगमग डगमग डगमग डोल,
कुर्बानी से रोयी धरा,आज कलम उनकी जै बोल।
देश से प्यारा कोई न था,देश के खातिर दे दी जान,
उन्हें गुलामी रास न आई, प्यारी थी उनको तो आन।
देश तो जानो उनका है,जो खून से सींच गये,
जुर्मों के व बीच हमारे, लक्ष्मण रेखा खींच गये।
जिनकी कुर्बानी का हम, नहीं चुकता कर सकते हैं मोल,
वो चिरयुवा,वो अजर अमर,आज कलम उनकी जै बोल।
रचना – श्री गोकुल कोठारी