किस्मत

एक टहनी एक दिन पतवार बनती है..
एक चिंगारी दहक अंगार बनती है..
रौंदी गई जो सदा बेबस समझकर..
मिट्टी वही एक दिन मीनार बनती है..

तपाई जाती है भट्टी में जो दिनों तक..
जुड़कर ईंट फिर दीवार बनती है..
बोकर खेतों में सींची जाती है पानी से..
फसल पककर ही तो आहार बनती है..

भर जाता है ईर्ष्या और द्वेष जब मन में..
सोच हमारी वो फिर बीमार बनती है..
विचार जो निकलते हैं मन से हमारे..
बोली वही हमारा व्यवहार बनती है..

चारों ओर छाती है हरियाली बसंत में..
खिलने से फूलों के ही बहार बनती है..
मदद मांगते हैं जब मुसीबत में हम..
आवाज हमारी वही गुहार बनती है..

क्रोध आता है जब हमें रणभूमि में..
हिम्मत तब प्रहार बनती है..
सालों तक करते हैं जो काम हम..
गतिविधि वो हमारा किरदार बनती है..

साहस जरूरी है दुश्मनों से लड़ने के लिए..
वीरता ही वीरों का अलंकार बनती है..
जिससे शोभा बढ़ जाए तन और मन की..
सामग्री वही देवियों का श्रृंगार बनती है..

  • नीरज चंद्र जोशी ..

Add Your Comment

Whatsapp Me