एहसासों की धुरी पर

एहसासों की धुरी परमन का मचलनाबहक सा गया,वो निगाहें मिलातेरह गयेऔर दिल का धड़कनाठहर सा गया।कोमल – कोमल सेशब्दों पररिमझिम प्यार कीबूंदें सी।वफ़ा की आसविश्वास के पथ परराह जैसे कोई अधूरी सी।सांसे सरगमजब गाती हैंलम्हा -लम्हा महकता…

सौंदर्य

सौंदर्यकितना आकर्षक है यह शब्द?कैसे मोह लेता है हर मन को ?हर कान सुनना चाहता है इसेहर नयन देखना चाहते हैं इसेहर आत्मा चाहती है इसकी अनुभूतिऔर हर प्राण चाहता है इसे पी जानाविविध रूपों में।।चाहता तो…

ग़ज़ल – ग़म का इज़ाफ़ा लिखूँ या ऐतबार लिखूँ

ग़म का इज़ाफ़ा लिखूँ या ऐतबार लिखूँ,उस से यों हुआ मन ही मन में प्यार लिखूँ।कब पथरीली डगर पर वो खुशी सी मिली,कब चली शजर से एक हसीं बयार लिखूँ। लिखने को लिख सकता हूँ वो रातें…

मुस्कुराहटें

अपनी कार को सड़क पर दौड़ाये जा रहा था वह। बहुत गमगीन था। अभी अभी मित्र को शादी की सालगिरह की शुभकामना भेजी थी उसने। उसी क्षण उसे याद आया कि आज तो उसकी भी सालगिरह है,…

धूप तुम आती रहना

धूप तुम आती रहना… घर की पुरानी छत के,छोटे-छोटे छिद्रों से ,दीवारों के आड़े तिरछे रोशनदानों से ,बंद दरवाजों के टूटे हुए हिस्सों से ,काली घनी निराश बदरियों के पीछे से,चुपके से निकलकर,धूप, तुम आती रहना ।…

डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ जी की तीन कविताएँ

1. मैं पानी हूँतरल, स्वच्छ और नरमओ समय!तुम यदि पत्थर भी होतो कोई बात नहीं,चलती रहूँगी प्यार सेतुम्हारी कठोर सतह पर –धार बनकर।एक दिन तुम्हारी कठोर सतह परमेरे निशान होंगे !और होगी ……एक कभी न थकने वाली-स्त्री…

कौन हो तुम ??

सलोना सा चेहराखिलखिलाती आँखेंमुस्कुराते से लबमिश्री सी बातेंकौन हो तुम ?मिलते ही करतीहृदय को स्पंदितमधुर मुस्कान कालुटाती अमृतअपनी सी लगतीकौन हो तुम?सौंदर्य केप्रतिमान समेटेमन के सबअरमान समेटेमन को बहलातीकौन हो तुम?सबकी नजरोंका आकर्षणनीरव में भीभरती जीवनपुष्पलता सीकौन…

पहली मुलाक़ात

पहली मुलाक़ाततुम और मैं, तकते एक दूसरे कोझिझकते, सकुचातेनिकट आने कोकुछ अकुलाते, मिलना दृष्टि काऔर खिलना पुष्प,कुछ तुम्हारे गालों परऔर कुछ जो बने थेतुम्हारी साड़ी पर, आमन्त्रणतुम्हारी आँखों में,किन्तुझिझकती चेष्टाएँ,शायद कहती थींतनिक रुको नकुछ सम्हल तो लूँ,प्रसन्नता…

ख़ुद को मेरी नज़र से देख ज़रा

ख़ुद को मेरी नज़र से देख ज़रायूँ ही ख़ुद को निखरते देख ज़रा।। छत पे आकर दहकती बारिश मेंदिल को मेरे सुलगते देख ज़रा।। मुझको लफ़्ज़ों से क्यूँ परखता हैदिल में मेरे उतर के देख ज़रा।। दुनियाँ…

कामकाजी औरत

कैसी होती है कामकाजी औरत ?कभी देखा है?कितना जी पाती है जीवन ?कभी सोचा है? घर और दफ़्तरदो हिस्सों में बँटी देह और दिमाग़संतुलन बनाने कोकिसी कुशल नटी सा अनंत प्रयास।दो स्थान, दो ज़िम्मेदारियाँऔर उलाहने भी दोनों…

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