धूप तुम आती रहना

धूप तुम आती रहना…

घर की पुरानी छत के,
छोटे-छोटे छिद्रों से ,
दीवारों के आड़े तिरछे रोशनदानों से ,
बंद दरवाजों के टूटे हुए हिस्सों से ,
काली घनी निराश बदरियों के पीछे से,
चुपके से निकलकर,
धूप, तुम आती रहना ।

  • * *
    ज़ेहन के गहरे धुंधलके में,
    उम्मीद की किरण बनकर ,
    खामोश सर्द शामों में,
    सुरमई रोशनी बिखेर कर ,
    मरती हुई मानवता के लिए,
    संजीवनी बनकर,
    धूप, तुम आती रहना ।
  • * *
    मानव की महत्वाकांक्षा की,
    पराकाष्ठा का परिणाम कम करने,
    विश्व में फैली विभीषिका से ,
    बेकस, बेदर बाशिंदों की ,
    इच्छाशक्ति व अनुशासन बढ़ाने,
    मौत के गहरे सन्नाटे के बीच ,
    जीने की जिजीविषा कायम रखने.
    धूप, तुम आती रहना ।
    * * *
    श्रीमती मीनू जोशी
    अल्मोड़ा , उत्तराखंड
  • कवयित्री ‘हिंदी साहित्य भारती’ (अंतरराष्ट्रीय), उत्तराखंड की संयुक्त प्रदेश महामंत्री तथा सक्रिय साहित्यकार हैं। आप अनेकों मंचों पर यादगार काव्यपाठ कर चुकी हैं।

2 Comments

  • Posted May 9, 2022 2:16 am
    by
    Neelam Sharma

    बहुत खूबसूरत रचना पढ़ते पढ़ते वो बिल्डिंग भी याद आयी जिनकी वजह से छोटे घरों में धूप नहीं पहुंच पाती पर फिर भी कहीं न कहीं से धूप अपना रास्ता बना ही लेती है
    हार्दिक बधाई सकारात्मक ऊर्जा इस रचना के द्वारा प्रवाहित करने के लिए

  • Posted May 9, 2022 4:45 pm
    by
    डॉ० हेम चन्द्र तिवारी

    नैराश्य में उम्मीद की किरण | सुंदर कविता |

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