धूप तुम आती रहना…
घर की पुरानी छत के,
छोटे-छोटे छिद्रों से ,
दीवारों के आड़े तिरछे रोशनदानों से ,
बंद दरवाजों के टूटे हुए हिस्सों से ,
काली घनी निराश बदरियों के पीछे से,
चुपके से निकलकर,
धूप, तुम आती रहना ।
- * *
ज़ेहन के गहरे धुंधलके में,
उम्मीद की किरण बनकर ,
खामोश सर्द शामों में,
सुरमई रोशनी बिखेर कर ,
मरती हुई मानवता के लिए,
संजीवनी बनकर,
धूप, तुम आती रहना । - * *
मानव की महत्वाकांक्षा की,
पराकाष्ठा का परिणाम कम करने,
विश्व में फैली विभीषिका से ,
बेकस, बेदर बाशिंदों की ,
इच्छाशक्ति व अनुशासन बढ़ाने,
मौत के गहरे सन्नाटे के बीच ,
जीने की जिजीविषा कायम रखने.
धूप, तुम आती रहना ।
* * *
श्रीमती मीनू जोशी
अल्मोड़ा , उत्तराखंड - कवयित्री ‘हिंदी साहित्य भारती’ (अंतरराष्ट्रीय), उत्तराखंड की संयुक्त प्रदेश महामंत्री तथा सक्रिय साहित्यकार हैं। आप अनेकों मंचों पर यादगार काव्यपाठ कर चुकी हैं।
2 Comments
Neelam Sharma
बहुत खूबसूरत रचना पढ़ते पढ़ते वो बिल्डिंग भी याद आयी जिनकी वजह से छोटे घरों में धूप नहीं पहुंच पाती पर फिर भी कहीं न कहीं से धूप अपना रास्ता बना ही लेती है
हार्दिक बधाई सकारात्मक ऊर्जा इस रचना के द्वारा प्रवाहित करने के लिए
डॉ० हेम चन्द्र तिवारी
नैराश्य में उम्मीद की किरण | सुंदर कविता |