करवाचौथ

आज फलक पर चांद देखो
फीका फीका लगता है
कितने बिम्ब धरा पर इसके
रूप का सावन बहता है।
ठनी हुई धरती अंबर मे
दमक रहा है किसका आंगन
धारण धरा धवल दुशाला
छाया चौदस का उजियारा है।

आज न श्रापित चौथ का चांद
लुक छिप करता बादल में
संगी साथी सितारे व्योम के
शोभामान गोरी के ललाट के
आज प्रकाशित चांद धरा से
दीप असंख्य अखंड सुहाग के
आज रंगा धरा का आंचल
जैसे प्रणय रस के सावन मे।

आज तर्क पर प्रेम है भारी
वृंदावन हुई हर गलियारी
मोती से पल-पल चुनते
प्रेमी यादों के धागे बुनते
दे अमिट प्रेम की सौगाते
क्षणभंगुर इस जीवन को
जाने कौन किसके हिस्से
सांसों के कितने दीपक जलते।

जनम जनम का बंधन बांधे
प्रेम तपे जब कुंदन सा
विश्वास समर्पण की आहुति
बना कारण सृष्टि चक्र का
रंगा प्रेम जब आस्था में
हो एकाकार अवनी अंबर
सार्थक वही संबंध जिसमें
मन का मन से हो स्वयंवर

सर्वाधिकार सुरक्षित
बीना नयाल

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