ग़ज़ल – ग़म का इज़ाफ़ा लिखूँ या ऐतबार लिखूँ

ग़म का इज़ाफ़ा लिखूँ या ऐतबार लिखूँ,
उस से यों हुआ मन ही मन में प्यार लिखूँ।
कब पथरीली डगर पर वो खुशी सी मिली,
कब चली शजर से एक हसीं बयार लिखूँ।

लिखने को लिख सकता हूँ वो रातें तन्हा,
पर सोचता हूँ कि ठंडक भरी फुहार लिखूँ।
खुशियाँ हैं मिलीं पर कितनी भी याद नही,
सौ,दो सौ,हजार या फिर कई हजार लिखूँ।

ज़ख़्मों से जब राब्ता, दर्द हर बार मिला,
कब चढ़ा इश्क़ में फिर कोई ख़ुमार लिखूँ।
इक बर्फ़ सी छुअन थी वो लगता है अभी,
पर रातों को जिस्म दहकता अंगार लिखूँ।

अब ख़ुदा तू ही कह तिरा पता है कि नही,
वो दरगाह पर यकीं या फिर मज़ार लिखूँ।
चल लिखकर नही लिखूँ वो टूटा सा भरम,
इस अलम दुनियां में है उस सा यार लिखूँ।

संजय कुमार भारद्वाज

पो.ओ. टनकपुर, जनपद – चम्पावत

लगभग दर्जन भर से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में लेखक के लेख कविता आदि प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त इनका एकल ग़ज़ल संग्रह ‘महकते एहसास’ भी प्रकाशित हो चुका है।

1 Comment

  • Posted May 15, 2022 12:16 am
    by
    मोहन चन्द्र पाठक

    सुंदर गजल

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