मैं बुराइयों को खुद से बहुत दूर कर दूंगा..
शख्शियत को अपनी कोहिनूर कर दूंगा..
देगा अगर जमाना ढेरों जख्म मुझ को..
तो खुशी से उसके गुरुर को चूर कर दूंगा..
गर हँसेंगी दुनिया मुझ को रुला के बहुत..
मैं खुश हूँ बहुत ये बात मशहूर कर दूंगा..
सामने लाऊंगा असली गुनहगार को और..
इस तरह साबित खुद को बेकसूर कर दूंगा..
खुदा ने गर रखा मुझे इश्क से महरूम तो..
साबित अपनी काबिलियत जरूर कर दूंगा..
अगर आंका भगवान ने कमतर मुझ को..
जोर ए आजमाइश अपना शुरुर कर दूंगा..
इंसाफ दिलाएगा जो भी फरियादियों को ..
मैं बादशाहत उसकी कबूल कर दूंगा..
रोका जो मुझे रब के वास्ते किसी ने..
हर इल्तजा उसकी नामंजूर कर दूंगा..
ताबीज पहनूंगा परवतदिगार के नाम का..
इस तरह खुद को चश्मेबद्दूर कर दूंगा..
जोर मेरे बाजुओं का देखना चाहते हो..
मैं चाहत तुम्हारी पूरी हुजूर कर दूंगा..
आस्तीन के सांपों के फनों को कुचलकर..
घावों को उनके कुरेदकर नासूर कर दूंगा..
- नीरज चन्द्र जोशी..
1 Comment
Dr Akshay
बहुत सुंदर रचना