यहाँ मासूम दीवाना सा लगे
फ़रेबियों का निशाना सा लगे।।
फटे कुर्ते में यहाँ इल्म जिया
इश्तेहारों का ज़माना सा लगे।।
सिक्के खोटे भी चलाने का हुनर
जिसमें हो वो ही सयाना सा लगे।।
पर्वतों से उतरना झरनों का
मेरे महबूब का आना सा लगे।।
देख के उनका मुस्कुराना “बशर”
एक बेबाक सा फ़साना लगे।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”
“कुछ शब्द ठिठके से” पुस्तक से उद्धृत।।
3 Comments
डा कविता भट्ट ' शैलपुत्री '
बहुत सुंदर रचना
डा कविता भट्ट ' शैलपुत्री '
बहुत सुंदर रचना, हार्दिक बधाई
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार