ये इरादे से हर इक बार पलट जाता है,
दिल हर इक बार किसी ख़ास पे आ जाता है।।
जब कभी अहद किया, इश्क़ ना फरमाएंगे,
नाज़ ओ अंदाज़ किसी और का भा जाता है।।
ज़ुल्फ के पेंच पे, सरकते हुए आंचल पे,
सुर्ख़ होठों पे कभी दिल मचल सा जाता है।।
बच के चलता हूं तेरी गलियों, तेरी यादों से,
साथ यारों के तेरा ज़िक्र आ ही जाता है।।
लाख समझाया मगर तू ना ‘बशर’ सुधरेगा,
ज़ख़्म हर बार नया तू भी ले ही आता है।।
दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।।
मेरे काव्य संग्रह ‘कुछ शब्द ठिठके से’ से उद्धृत।।
4 Comments
Anup Kaushal
Very nice पाठक जी
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार आदरणीय
डा कविता भट्ट ' शैलपुत्री '
वाह, बहुत सुंदर
Dinesh Chandra Pathak
हार्दिक आभार आदरणीया