मैं तेरा कोई नहीं हूं।

मैं तेरा कोई नहीं हूं, तो ये रिश्ता क्या है?
यूं तेरा मुझसे खफा होना, जताता क्या है?

तेरी आँखें ही तेरा हाल बयां करती हैं
तू भला दांतों तले होंठ दबाता क्या है?

वो समाया है तेरी रूह में सबको है पता
भूल जाने का सबब हमको बताता क्या है?

उम्र कोई भी रही हो मगर उससे मिलकर
वक्त से लड़ने का ये जज़्बा दिखाता क्या है?

वो कि जिसने कभी ठोकर नहीं खाई हो उसे,
अपने जख्मों का तू एहसास कराता क्या है??

दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’ ।।
मेरे काव्य संग्रह ‘मेरा जीवन मेरी व्यथाएं’ से उद्धृत।।

2 Comments

  • Posted December 10, 2022 1:26 pm
    by
    Lalit tomar

    बहुत सुंदर पाठक जी..

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