जीवन-यात्रा के साथ

जीवन-यात्री हम सभी,
इस जीवन कालचक्र के,
हमारी पीठ पर गहरी बँधी,
गठरी अपेक्षाओं की।
समोये यह गठरी पता नहीं क्या-क्या ?
तुड़ा – मुड़ा, कुछ जीर्ण- कुछ नव्य सा,
ये ,वो ,ऐसा, वैसा ,किंतु ,परंतु —-
कुछ रंग उड़े,
कुछ सीलन से भरे,
तो कुछ अभी पनपे।
अग्रशील यात्रा में बलिष्ठ होती गई,
जैसे-जैसे गठरी,
खिन्न – अन्यमनस्क सी हो उठीं,
भारपन तले खुशी ।
वे ही खुशियाँ जो पूर्व बहुधा ही,
मुस्कुराया करती थीं,
अबोध श्रीमुख के साथ जिंदगी तक,
आया करती थीं।
अब कर रहीं बेचैन,
यात्रा को बोझिल सम कर देती हैं,
सौ भंवर लपेट कदमों में,
जीवनाकांति तम कर देती हैं ,
वाहित ये विवशता हैं-
कदमों की,श्रीमुख की,
साँसों की, यात्रा की।
अपेक्षाओं के गर्भ से जन्मी,
इस पीड़ा का क्या?
अर्थ स्पष्ट-अस्वीकार्य वर्तमान,
तदन्तर अस्वीकृतियों का जाल।
चल ,घुमा कर फेंकते हैं,
इस गठरी को,
उस अनंत की ओर,
जहाँ पृथ्वी और आकाश ,
गले मिलकर पृथीकाश हो जाते हैं,
ऐसे नचा कर छोड़ दे इसे,
जैसे लट्टू ,
रस्सी खींच छोड़े शिशु और
करतल नृत्यतरंग बन जाते हैं।

रीता रानी
जमशेदपुर, झारखंड

लेखन कार्य- सम-सामयिक, सामाजिक विषयों एवं साहित्य लेखन के क्षेत्र में अभिरुचि, अन्य लेखकों के साथ संयुक्त रूप से पुस्तकें प्रकाशित, स्थानीय समाचार पत्रों के अलावा अमृत विचार (उत्तर प्रदेश), निर्दलीय (मध्य प्रदेश) केंद्र सरकार की राजभाषा विभाग की पत्रिका, अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका ‘गृहस्वामिनी’, ‘तुम्हारे लिए’, ई पत्रिका ‘आदिज्ञान’, आध्यात्म संदेश पत्रिका आदि में समय-समय पर रचनाओं का प्रकाशन।

1 Comment

  • Posted September 12, 2022 4:27 pm
    by
    Mark

    Thanks for your blog, nice to read. Do not stop.

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