सुबहें मां की गोद
दुपहरी धूप तापी
इन शामों में मिले
तो क्या मिले?
चली डगर
पानी पर बैठी लहर
किनारों में सागर मिले
तो क्या मिले?
शिकायत नहीं
प्रीत से तेरी
ढलती मिले
तो क्या मिले?
मै छांव की चाह में
शहर _शहर
अब गांव भी मिले
तो क्या मिले?
कुंडियां सारी बंद
खिड़कियां मायूस
कोई खुली मिले
तो क्या मिले
लौट आते हैं
अधूरे सपनों से
फिर नींद खुले
तो क्या मिले?
_अन्नू मैंदोला