सुनो पुत्री!
ऐसा भी क्षण आएगा
रुद्ध कंठ हो जाएगा
अस्फुट स्वर इन अधरों का
व्यक्त न कुछ कर पाएगा।।
अस्थिर मनोदशा होगी
अवर्णनीय व्यथा होगी
कहूं भाव अंतिम क्षण के
इतनी शक्ति कहां होगी?
है अंतिम आदेश यही
जब देखो पलकें भीगी
स्वर का साज सजा देना
राम नाम धुन गा देना।।
दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।।