उल्फत का यही दस्तूर होता है..
जिसे चाहो वही हमसे दूर होता है..
भले ही छोड़कर हमें चले जाए वो..
यादों में समाया उनका नूर होता है..
साथ मिलकर जो सपने सजोए थे..
हर वो ख्वाब चूर चूर होता है..
इल्म इसका हमें भी नहीं था..
मगर इश्क बहुत मगरुर होता है..
सारे जहां की बुराई थी हममें..
हमारा हश्र चश्मेबद्दूर होता है..
उन्होंने कभी सोचा न था..
जमाने का भी एक उसूल होता है..
कल तक जो बदनाम था..
आज वही मशहूर होता है..
उनसे हम दिल लगा बैठे तो इसमें..
दिल ए नादान का क्या कसूर होता है..
- नीरज चंद्र जोशी ..