दर्द पहाड़ों का

आपदा ने पहाड़ों में नदियों का रुख मोड़ा है..
सरिताओं ने पुण्य वाहिनी तटबंधों को तोड़ा है..

शिक्षा और रोजगार के लिए पलायन हो रहा..
सूने होते गांवों में निज गांवों को हमने जोड़ा है..

कूट कूट कर यहां भरा हुआ है देशप्रेम हर बच्चे में..
युवा रक्षा करने देश की भर्ती में फौज की दौड़ा है..

अस्पतालों में पहाड़ों के विशेषज्ञ डाॅक्टर है नहीं..
रहना औद्योगिक शहरों में समृद्धि का घोड़ा है..

छोड़ रहे हम वेशभूषा अपनी, बोली और परंपराएं..
राह में पश्चिम के हमने निज संस्कृति को छोड़ा है..

कराह रही है आज पवित्र धरा इस देवभूमि की..
भ्रस्टाचार असुर रूपी  उन्नति के पथ में रोड़ा है..

                     – Neeraj Chandra Joshi ..
                       

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