कर्म

करके जुर्म लोग पाप गंगा में धोते हैं..
अवाम के बीच ही मुजरिम छुपे होते हैं..

रहकर अंधेरे में होती है चाह उजाले की..
कुछ पाते हैं हम तो कभी कुछ खोते हैं..

जरुरत है उसको रोशनी और हवाओं की..
जिस बीज को हम मिट्टी में भिगोते हैं..

तूफान उड़ा देता है चैनो सुकून उनका..
खुले आसमान में बेफिकर जो सोते हैं..

मर्जी है आपकी बुरा किया या भला किया..
बोझ अपने कर्मों का हम सभी ढोते हैं..

आने वाले कल में वही हमें मिलता है..
गुजरे अतीत में जो हम सभी बोते हैं..

                 -  नीरज चंद्र जोशी..

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