इंसानियत

बेइंतहां कसरत से हम बलवान बनते हैं..
हिफाजत के लिए वतन की जवान बनते हैं..

महफूज है उनके होते हुए अवाम देश की..
दुश्मन के लिए मौत का सामान‌ बनते हैं..

रह न जाए भूखा कोई इसीलिए लोग..
पेट भरने के लिए उनका किसान बनते हैं

आशियाना हो सबके पास रहने के लिए..
इसलिए रोज दुनिया में मकान बनते हैं..

दूसरों का दुख दर्द समझ सकें हम इसलिए..
दिल चाहे कुछ भी हो एक समान बनते हैं..

बाजी जान की हमारे लिए लगा सके कोई..
हर उस शख्स का हम कदरदान बनते हैं..

आकर इस कायनात में देवता भी जन्नत से..
मोक्ष की चाहत में लेकर जन्म इंसान बनते हैं..

खुद के लिए जीते हैं जानवर मगर कुछ लोग..
औरों के खातिर जीकर ही भगवान बनते हैं..

          - नीरज चंद्र जोशी ..

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