अपने

हर तपिश को जिंदगी की मुस्कुरा कर झेलिए..
धूप कितनी भी हो समंदर सूखा नहीं करते..

नजरंदाज करते नहीं नाराजगी अपनों की..
बर्ताव उनसे भूलकर भी रूखा नहीं करते..

कुर्बानी भी दे सकते हैं वो जान की अपनी..
जो कुनबे को अपने दुख में देखा नहीं करते..

हमेशा करना बेवजह मदद उनकी, दोस्तों को..
रख कर भूखा खुद भोजन चखा नहीं करते..

कलम की जरुरत होती है लिखने के लिए..
आंसुओं से कागज में गम लिखा नहीं करते..

जुदा हो जाएंगे परखने पर हमदर्द भी अपने..
अपनों को कभी भूलकर भी परखा नहीं करते..

            - नीरज चंद्र जोशी..

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