अपने किरदार को खरा रखना
दिल को जज़्बात से भरा रखना।।
धूप कहती गई है जाते हुए
राह के पेड़ को हरा रखना।।
तेरे हिस्से में भी महक होगी
खिड़कियों को ज़रा खुला रखना।।
बाँह फैला के जो मिले कोई
तो नहीं तुम भी फासला रखना।।
हादसे ज़िंदगी का हिस्सा हैं
तू मगर ख़ुद पे हौसला रखना।।
कितने ऐबों का है इलाज़ ‘बशर’
सामने ख़ुद के आईना रखना।।
दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।।
मेरी पुस्तक ‘कुछ शब्द ठिठके से’ से उद्धृत।।