शहर से निकली तो गाँव गाँव चली..
कुछ यादें मेरे संग पाँव पाँव चली..
किया सफर धूप का तो तजुर्बा हुआ..
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली..
हुआ जब गुमान तो बेइंतहां हुआ..
मुश्किलें कुछ मेरे साथ साथ चली..
छू न सका मुझे कोई दुश्मन मेरा..
दुआएं तेरी मेरे आस पास चली..
उन्होंने घर जलाए तेरा शुक्रिया..
बुझाने आग हवाएं बार बार चली..
बचने को उजाले से मेरी कश्तियां..
घनघोर अंधेरों में रात रात चली..
मौजूदगी के मेरे निशां ढूंढने..
दरिंदगी उसकी घाट घाट चली..
सेनाएं उसकी इस बियाबान में..
झाड़ झंखाड़ सब काट छांट चली..
मेरी एक पुकार पर तेरी शक्तियां..
छीनने उसका राज पाट चली..
रखा जब हाथ तूने सिर में मेरे..
गई उसकी हुकूमत ठाठ बाट चली..
- – नीरज चंद्र जोशी ..