लम्हे कुछ टीस भरे से

लम्हे कुछ टीस भरे से
कुछ बोझिल-बोझिल साँसें
कुछ यादें छलकी-छलकी
कुछ बहकी-बहकी बातें।।

इक इंतज़ार बस तेरा
धुँधली सी उम्मीदों में
नाउम्मीद से करते
तन्हा दिन, बेकल रातें।।

वो तेरे हुस्न के चर्चे
अक्सर ग़ैरों से सुनना
तिल-तिल ख़ुद ही जलना
ख़ुद के दिल को समझाते।।

ये ही लेकर आया हूँ
तेरी गलियों से मैं तो
तेरा ही नाम वफ़ा है
कुछ लोग थे मुझे बताते।।

दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।।

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