बच्चों मेरी गली में आओ
खेलो – कूदो धूम मचाओ
गौरैया, बुलबुल से चहको
सूनेपन को दूर भगाओ।।
गुड्डा-गुड़िया के बाराती
बन जाओ सब संगी-साथी
मुन्नी ठुमक-ठुमक कर नाचो
बबलू ढोल पे ताल बजाओ।।
गिल्ली – डण्डा, छुपम-छुपाई
खौ-खौ औ पकड़म-पकड़ाई
सब मिलजुल के कबड्डी खेलें
जी भरकर तुम उधम मचाओ।।
खेल-खेल में लड़-भिड़ जाना
रूठना थोड़ा और मनाना
बाग़ी तेवर आँख दिखाना
यार चलो अब मान भी जाओ।।
खेल स्वस्थ जीवन का साधन
चित्त प्रफुल्लित, पुलकित तन-मन
घर से बाहर निकलो आओ
नया चलो उत्साह जगाओ।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”
“कुछ शब्द ठिठके से” पुस्तक से उद्धृत।।