तंज के कुछ और नश्तर अपने सीने पर लिये
चल दिये महफ़िल से तेरी, सब्र का मरहम किये।।
तेरी चाहत इक तरफ, फिर तेरी रुसवाई का डर
बेवफ़ा का नाम ले हम अपने होंठों को सिये।।
कौन जाने ये कि उसकी है अदा या और कुछ
टूटते तारे से उसका हाल वो पूछा किये।।
मैं अकेला रातभर, यादें तुम्हारी बेशुमार
रातभर घायल हुए, हर सुबह को चारा किये।।
जो नहीं हासिल उसी पे दिल का आ जाना ‘बशर’
अपनी बर्बादी का हम फिर और कुछ सामां किये।।
दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।
मेरे काव्य संग्रह ‘मेरा जीवन मेरी व्यथाएं से उद्धृत’।।
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Good