मेरे भीतर का कमरा

मेरे भीतर का कमरा
जो छिपाए हूं सबसे,
जबकि बाहर का कमरा
सजा है औपचारिकता से।
जो दिखती है सबको
वह मैं नहीं हूं,
जो हूँ वहां तक
न पहुंच पाता कोई।
बैठक सजाये
कई सौंदर्य साधनों से
ऊब होती है बैठक मे,
अंदर का कमरा
जहां शांति और सुकून
जिस तरह चाहो रहो,
कोई बंदिश नहीं ।
अपने अंदर का कमरा
जो भरा है,
भावनाओं के समंदर से
जहां नदियां बहती हैं
कल कल करती ,
जहां बसंत रहता
हर क्षण मौजूद।
जहां प्रेम में
पगी हूँ मैं ,
जहां दुख नहीं
आंसू नहीं,
कष्ट नहीं
खोई रहना चाहती हूं
उसी कमरे में ।
जहां सुकून है
भले ही औपचारिकता नहीं ,
जहां विहार करती हूं
फुर्सत के क्षणों में।।

डॉ शोभा रावत
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी विभाग)
पी. जी. कॉलेज कोटद्वार
तीन पुस्तकें प्रकाशित –
-लोक साहित्य
-काव्यांग एवं हिंदी कविता
-हिंदी भाषा एवं साहित्य
राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोधपत्र प्रकाशित।

1 Comment

  • Posted August 2, 2022 7:01 am
    by
    Manmohan Majeda

    Very nice mem

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