जिया नहीं जीवन खपाया है।

जिया नहीं, जीवन खपाया है
मैंने रिश्तों को निभाया है।।

खर्च घर के, हिसाब दफ़्तर का
रोज़ ये ही किया-कमाया है।।

ज़िंदगी काश तू मिली होती
पूछता क्या तेरा किराया है??

तीज त्यौहार कर्जदार लगें
बेरहम ने सदा सताया है।।

था ‘बशर’ को गुमान अपनों पे
रंग रिश्तों ने अब दिखाया है।।

सर्वाधिकार सुरक्षित
दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।।

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