जाने कितने दिलों की हसरत है

जाने कितने दिलों की हसरत है,
है तेरा हुस्न, या कयामत है??

सब्र ना चैन, उलझनें दिल में,
ये तेरा इश्क़ एक आफत है।।

दिल कहे होंठ चूम लूं तेरे,
होश कहता है कि ये वहशत है।।

मेरे शानों पे सर तुम्हारा हो,
इसी दुनिया में फिर तो जन्नत है।।

मेरी नज़रों की हर शरारत को,
तुम बढ़ावा दो, ये ही चाहत है।।

आँख से तेरी चुरा ले काजल,
इक ‘बशर’ में ही इतनी हिम्मत है।।

दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’।।
मेरे काव्य संग्रह ‘कुछ शब्द ठिठके से’ से उद्धृत ।।

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