अल्हड़ पहाड़न की अनोखी सादगी हो तुम,
सदाबहार के फूलों की कोई लड़ी हो तुम।।
छुईमुई सी सिमटी ना, तितली सी तुम उन्मुक्त हो,
स्थिर दीपशिखा के जैसी तेजोमयी हो तुम।।
उदार हिरदय हो मगर, फिर भी धनी हो मान की,
दूब सी जीवटता ले हर क्षण खड़ी हो तुम।।
मान हो परिवार का, माता-पिता की लाड़ली,
जीवन के संघर्षों से निर्भय भिड़ी हो तुम।।
भाई के हाथों की राखी, और मां की सहचरी,
काम पर जाते पिता की शुभ घड़ी हो तुम।।
ईश की बनकर कृपा, जीवन में तुम रहना सदा,
दो घरों की शान बन हरदम खड़ी हो तुम।।
दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर’ ।।
मेरे काव्य संग्रह ‘कुछ शब्द ठिठके से’ से उद्धृत ।।
2 Comments
rajeevkumarpoet@gmail.com
Good
Dinesh Chandra Pathak
Thanks a lot