तुम जब उदास होती हो
सखि ! मन मेरा घबराता है
इन अलसाई आँखों में
समन्दर नजर आता है।
हँसती रहो हँसती हुई तुम
कितनी अच्छी लगती हो
कि जैसे चाँद पूनम का
हर तरफ नजर आता है ।
यूँ तो उदासी किसी की हो
कभी अच्छी नहीं लगती, पर
तुम्हारी इस उदासी में,
हे सखि !अमावश नजर आता है ।
उठो सखि ! मुस्कुरा दो अब
छोड़ो भी ये गिले-शिकवे
वो देखो चाँद के उस पार
झिलमिल सितारा नजर आता है ।
तुम्हारे उदास होने से सखि!
उदास होती हैं ये कलियाँ
जरा मुस्कुरा कर तो देखो, कैसा
हसीं नजारा नजर आता है ।
कहूँ क्या अब मैं ऐ “निर्मल”
सखि! बतलाऊँ तुम्हें कैसे
तुम्हारी इस खमोसी से, ये
चमन वीरान नजर आता है।
___हीराबल्लभ पाठक “निर्मल”
स्वर साधना संगीत विद्यालय
लखनपुर रामनगर, नैनीताल ।
2 Comments
राजीव तिवारी
बहुत सुन्दर
प्रणाम
जय सिया राम
hirapathak
जय श्रीराम