लब पे तेरा नाम आया, यूँ ख़ुदा के साथ में
बंदगी औ इश्क़ दोनों, हो गए इक साँस में।।
तोड़ दुनियाँ की रवायत, छोड़ इसकी उलझनें
माँगने कुछ मैं हूँ आया, आज तेरे पास में।।
इश्क़ का अब है तकाज़ा, कुछ नहीं मेरा रहा
तू मिले या जिल्लतें सब है तेरे अब हाथ में।।
हाल दिल का कह दिया है, इश्क़ में मज़बूर हूँ
जाने तू समझे न समझे, मैं हूँ किन हालात में।
फ़ख्र मुझको था बड़ा ही, अपने रुतबे पे “बशर”
झुक गया जाने क्यूं तेरे सामने हर बात में।।
दिनेश चंद्र पाठक “बशर”।।