एक जीवन यह भी

खेतों और खलिहानों मेंमंदिर और मकानों मेंसड़कों और दुकानों मेंविक्षिप्त तन के छालेमहंगे पड़ते हैं निवाले।। फटे देह, फटे वस्त्रधारण किए निर्माण अस्त्रजेठ दुपहरी कुम्हलाएकुआं खोदे दिवस प्रतिकंठ अतृप्त मुरझाए।। ऊँची मीनारों की नक्काशीक्या मथुरा क्या काशीयुद्ध…

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