दूरियाँ


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नई – पुरानी पीढ़ी की
पिता और पुत्र की
सास और बहू की
घर के ही आँगन में
बढ़ रही हैं दूरियाँ ।
वसन्त पिछले जैसा नहीं
बरसात भी पहले जैसी नहीं
भाई से भाई के बीच
मानव से मानव के बीच
क्यों बढ़ रही दूरियाँ ।
मिठास नहीं वाणी में
स्वाद नहीं पानी में
दम घुटता हवा में
बढ़ रही प्रकृति से
क्यों मानव की दूरियाँ ।
मिलावट है दूध में
जहर घुला रिस्तों में
विचार दूषित हुए
संस्कार भी कहाँ रहे
कैसे घटें दूरियाँ,  कैसै घटें दूरियाँ ।
घटती हैं दूरियाँ मधुशाला में
कालाबाजार में भी घटती हैं दूरियाँ
व्यभिचार और झूठ में भी घटती दूरियाँ
सच बोलो तो फिर बढती हैं  दूरियाँ ।
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( हीराबल्लभ पाठक “निर्मल” , 
स्वर साधना संगीत विद्यालय
लखनपुर रामनगर , नैनीताल )

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