भगवान श्री राम – पूर्ण न्याय प्रतीक्षारत

वर्तमान में समूचे भारतवर्ष सहित विश्व भर की निगाहें अयोध्या की और टिकी हुई है । हो भी क्यों न लगभग 500 वर्ष के दीर्घकालीन वनवास के पश्चात प्रभु श्री राम पुनः पूरे विधि विधान के साथ अपने जन्म स्थान में विराजमान होने वाले हैं।
त्रेता युग के श्री राम त्याग , शुचिता, मर्यादा , संबंधो और इन संबंधों से ऊपर मानवीय आदर्श की वे प्रति मूर्ति है जिनका दृष्टांत आधुनिक युग में अनुसरण करने के लिए दिया जाता है ।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम आदर्श पुत्र, आदर्श राजा , आदर्श भ्राता ही नहीं वरन आदर्श पति भी हैं जो आजीवन एकपत्नी व्रती रहे। राम के समकालीन तथा उनके पश्चात जितने भी राजा हुए लगभग सभी बहुपत्नी वाले थे । द्वापर युग के भगवान श्री कृष्ण जो प्रभु श्री राम के ही अवतार माने जाते हैं , सहस्त्र रानियो सहित बहुपत्नी वाले थे । क्षत्रिय वंश के राजा ही क्यों अगर विभिन्न युगों के ऋषियों और राजपुरोहितों का भी दृष्टांत दिया जाए तो वहां भी बहुपत्नी प्रथा देखने को मिलती है, वह भी पूरी सामाजिक स्वीकार्यता और सहजता के साथ ।
भगवान श्री राम ने राजा होते हुए त्याग , संयम , धैर्य , सहयोग और प्रजा के प्रति सेवा भाव का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हुए पत्नी वियोग के साथ नाना प्रकार के कष्ट सहे।

ईश्वरीय अवतार होने के बावजूद मनुष्य रूप में अनेक कष्ट सहने के बावजूद इतिहास ने भी उनके साथ कम अन्याय नहीं किया। माता सीता पर मिथ्या दोषरोपण के कारण राम द्वारा सीता का परित्याग एक ऐसा प्रसंग रहा जिसके कारण आज भी प्रभु श्री राम नारीवादियों के कटघरे में खड़े दिखाई देते हैं।
मूल वाल्मीकि रामायण में सीता जी के त्याग का ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता। ऐसा माना जाता है यह प्रसंग बाद में तत्कालीन लेखको तथा कवियों ने राम कथा की दिशा को मोड़ने या यूं कहे राम की छवि को धूमिल करने और सनातन संस्कृति को नष्ट भष्ट करने के लिए जोड़ा । ऐसा भी कह सकते हैं कि भविष्य में नारी के लिए मर्यादा और शुचिता के कड़े मानदंड स्थापित करने के लिए बाद में यह प्रसंग जोड़ा गया हो ।

लंका विजय के पश्चात अग्नि को साक्षी मानकर सीता माता को पूरे मन से अपनाने वाले प्रभु श्री राम माता सीता का परित्याग करने के बजाय उनके साथ पुनः वनवास लेना अधिक श्रेयस्कर समझते।
लेकिन इस अनर्गल प्रसंग ने प्रभु श्री राम को निरपराध कटघरे में खड़ा कर दिया । शिक्षित होने के बावजूद मैं स्वयं भी दीर्घकाल तक राम के प्रति पूर्ण समर्पण तथा भक्ति से कतराती रही लेकिन अब दृष्टि विस्तारित तथा सत्य का पता लगने पर लगता है इतिहास के गर्भ मे कदाचित ऐसा कुछ हुआ ही ना हो ।

वाकई सीता माता के साथ अन्याय हुआ या नहीं यह तो अतीत के गर्भ में है परंतु यदि राम पर मिथ्या दोष लगाया गया है तो वाकई इस सूर्यवंशी महान प्रतापी और मर्यादित राजा के साथ हर युग में अन्याय हुआ है।

हिंदुत्व और सनातन धर्मावलंबियो के लिए अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तथा भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा एक गौरवशाली क्षण है और वर्तमान पीढ़ी बेहद भाग्यशाली है जो इन ऐतिहासिक क्षणों की साक्षी बनने जा रही है । वर्षों से प्रभु श्री राम जन्मभूमि का विवाद न्यायालय के समक्ष लंबित था जिसमें प्रभु श्री राम एक वादी के रूप में थे । दीर्घकाल के वनवास के पश्चात प्रभु श्री राम को अयोध्या में उनका स्थान प्राप्त हुआ है। अब सनातन धर्मावलंबियों की यही कोशिश होनी चाहिए कि हर युग के आदर्श प्रभु श्री राम को माता सीता के त्याग के मिथ्या दोष से मुक्त सिद्ध करें ताकि भावी पीढ़ी के हृदय तथा मन मस्तिष्क में राम के चरित्र तथा निर्णय को लेकर कोई संशय तथा दुर्विचार न रहे । भगवान श्री राम हर वर्ग , हर समुदाय, हर जाति के आदर्शों के रूप में स्थापित हो। यही मानवता की भूल का भी पश्चाताप होगा।

इतिहास अपने गर्भ में अनेक साक्ष्यो और अवशेषों को सहेजकर और छिपाकर कर रखता है और उपयुक्त समय आने पर सत्य का रहस्योद्घाटन भी कर देता है ।

मंदिर निर्माण में अनवरत आंदोलन, आस्था , कानूनी व न्यायिक प्रक्रिया के रूप में मानवीय प्रयास तो अंतर्निहित है ही परंतु इनसे भी ऊपर है ऐतिहासिक सत्य और सनातन का आत्म गौरव जो प्रकृति के भीतर ही वर्षों से उद्घघाटित तथा उद्भभासित होने के लिए छटपटा रहा था । नियति और कर्मों के प्रभाव से निर्मित भव्य राम मंदिर वर्तमान में करोड़ों हिंदुओं को आत्मसंतुष्टि तथा सुखद अनुभूति प्रदान कर रहा है।

बीना नयाल

Add Your Comment

Whatsapp Me