जीवन में निरंतरता व जीवंतता का सन्देश देता वसंतोत्सव

माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को देशभर में वसंत पंचमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। इसी के साथ देश मे ऋतुराज वसंत का आगमन हो गया है। यद्यपि सभी ऋतुओं का अपना-अपना महत्त्व है परन्तु वसंत ऋतु की छटा अनूठी व मनोहारी होती है। वसंत ऋतु में प्रकृति का सौन्दर्य सर्वोत्कृष्ट रूप में अभिव्यक्त होता है।
कंपकंपाती शीत ऋतु के पश्चात वसंत का आगमन जहां एक और मनुष्य सहित सभी जीवो को ठंड से राहत देकर नव स्फूर्ति, उमंग ,चेतना और उत्साह का संचार करता है तो दूसरी और पतझड़ के पश्चात पेड़ों व शाकों में नवीन पत्ते आ जाते हैं ऐसा प्रतीत होता है प्रकृति ने पुराने वस्त्रों का परित्याग कर नवीन वस्त्र धारण कर लिए हैं। सर्वत्र रंग-बिरंगे पुष्पों से धरती का सौन्दर्य खिल उठता है।
ऐसा प्रतीत होता है धरती प्रौढ़ावस्था के पश्चात तरुणी हो गई है और वसन्त के आगमन के स्वागत में नववधू की भाँति शृंगार कर रही है। प्रकृति में चेतना का प्राकट्य और उत्सव का वातावरण प्रतीत होता है। वास्तव में प्रकृति में होने वाला यह सकारात्मक परिवर्तन मानव जाति को निरंतरता और जीवंतता का संदेश देता है।
वसंत ऋतु मे आम के पेड़ों में लगने वाले बौर, फूलों पर मंडराते भंवरे, सरसों के फूलों से स्वर्ण समान सजे खेत, पक्षियों का कलरव, पहाड़ों पर बर्फ पिघलने के पश्चात नदियों में प्रवाहित जल और स्वच्छ नभ धरती का सोलह शृंगार कर उसका सर्वोत्कृष्ट रूप उजागर करते हैं।
प्रकृति का मनोरम दृश्य मनुष्य में भी चेतना, उत्साह, उमंग और प्रेम का संचार करता है।
मानव जाति के सभी वर्गों को वसंत का पर्व स्पर्श करता है। छात्रों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों के लिए यह पर्व विद्या व कला की अधिष्ठात्री मां सरस्वती की आराधना का पर्व है तो युवक-युवतियों के लिए प्रणय निवेदन व परिणय सूत्र में बंधने का शुभ अवसर है।
पहाड़ों में तो यह प्रचलित है कि बसंत पंचमी के दिन शुभ कार्य की शुरुआत के लिए किसी भी प्रकार के लग्न और मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती।
वहीं गृहस्थ लोगों के लिए बसन्त का पर्व संयम, सदाचार, प्रकृति के अनुकूल स्वयं को ढालने ,सृजन और निरन्तर चलायमान रहने का सन्देश प्रदाता है तो वृद्ध लोगों को परिवर्तन को सहज मानकर जीवन में नवीन आशा व उत्साह के साथ जीने की कामना का सन्देश लाता है।

पहाड़ों में बसन्त पंचमी की छटा निराली होती है। किसानों की फसलें पक जाती हैं। यहां वसंत पंचमी का विशेष महत्व है। लोग वसंत पंचमी के दिन जौ के हरे पत्ते गोबर के साथ पूजा के पश्चात घर की देहरी पर चढ़ाते हैं। मान्यता है कि इससे घर में सुख व समृद्धि आती है।
कुंवारी लड़कियाँ बुरांश के फूलों को चुन कर लाती हैं और उन्हे गांव के घरों की देहरी में डालती जाती हैं जिसे सुख समृद्धि व सौभाग्य का सूचक माना जाता है। इसके बदले में घर के बड़े गुड़, चावल, मिठाई और पैसे आदि आशीर्वचनों के साथ इन की टोकरी में डालते हैं।
विवाहित स्त्रियों के लिए वसंत पन्चमी उनके मायके में जाने का त्यौहार होता है। बेटियाँ मायके आती हैं तो उनके स्वागत में भांति-भांति के पकवान बनते हैं और उन्हें पड़ोस की सखियों के साथ मेल- मिलाप का अवसर मिलता है जिससे उत्सव का माहौल बन जाता है।
वास्तव में वसंत ऋतु में प्रकृति में आने वाला सकारात्मक परिवर्तन मानव को शरीर व जीवन में होने वाले परिवर्तनों के साथ तालमेल बिठाते हुए जड़ता, अहंकार, मूढ़ता और विषय भोग की प्रवृत्ति को त्याग कर संयम, उत्साह, प्रेम और निरन्तर चलायमान रहने का सन्देश देता है।
अतः आवश्यक है बसंत पंचमी के आगमन के साथ शुरू होने वाले वसंतोत्सव को भरपूर रूप से जीते हुए नकारात्मक प्रवृत्ति का त्याग कर जीवन की जीवंतता और निरन्तरता को बनाये रखें तथा प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए अपने-अपने हिस्से का वसंत खोजने का प्रयास करें।

बीना नयाल
सर्वाधिकार सुरक्षित

1 Comment

  • Posted January 25, 2023 9:46 pm
    by
    डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'

    बहुत सुन्दर

Add Your Comment

Whatsapp Me