गुरुत्वाकर्षण बल और जीवन

विज्ञान और अध्यात्म अंतर्संबंधित हैं। अध्यात्म की गहन जानकारी ना होने के बावजूद सतही तौर पर मैंने इतना अनुभव किया है कि अध्यात्म में जो भी तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं वे वैज्ञानिक दृष्टि से भी तर्क सम्मत व प्रमाणित हैं तथा विज्ञान में प्रकृति और ब्रह्मांड के संबंध में जो रहस्योद्घाटन किए गए हैं वे भी अध्यात्म से कहीं ना कहीं संबंधित ही है। आज की पोस्ट विज्ञान और अध्यात्म के अंतर्संबंध पर आधारित मेरा एक छोटा सा प्रयास है।
पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल प्रत्येक वस्तु को अपनी और आकर्षित करता है किसी भी वस्तु को हवा में उछालने पर एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचने के पश्चात वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण नीचे आना आरंभ कर देती है । वस्तु के द्वारा प्राप्त की गई ऊंचाई इस तथ्य पर निर्भर करती है कि उसे कितने अधिक वेग से उछाला गया। जितने अधिक वेग से वस्तु को उछाला जाता है उतनी ही अधिक ऊर्जा उसमें समाहित हो जाती है जो वस्तु की अधिकतम ऊंचाई को निश्चित करती है।
ठीक इसी प्रकार मनुष्य अपनी जीवन यात्रा शून्य से आरंभ करता है और अपने कर्म व पुरुषार्थ के वेग की तीव्रता के आधार पर ऊपर उठने का प्रयास करता है तो कहीं ना कहीं गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत कार्य करता है। विचार जितने अधिक उच्च व परिशुद्ध होते हैं सकारात्मक ऊर्जा का स्तर उतना अधिक हो जाता है जिससे कर्म भी उतने ही उत्कृष्ट और प्रगतिशील हो जाते हैं और व्यक्ति उनके बल पर समाज में ऊपर उठता चला जाता है और पद, प्रतिष्ठा, धन और ऐश्वर्य अर्जित करता है। लेकिन एक बिंदु के पश्चात समय का अंतराल, उस स्थिति में भोग की प्रवृति ओर व्यक्ति का अहंकार उसे भारयुकत बना देता है। व्यक्ति पुनः धरातल पर आ जाता है।
कहने का तात्पर्य है कि संसार में पद, प्रतिष्ठा, धन, ऐश्वर्य कुछ भी स्थाई नहीं है जो वस्तु ऊपर उठती है वह नीचे अवश्य आनी है। आखिरकार एक बल नीचे की ओर से भी कार्य कर रहा है। इसलिए जिस व्यक्ति के विचार जितने अधिक शुद्ध सकारात्मक होते हैं उसका उर्जा स्तर उच्च बना रहता है। उसके कर्म भी विलक्षण और समाज उपयोगी हो जाते हैं ।
जब वैचारिक शुद्धता और कर्म की उत्कृष्टता पलायन वेग से अधिक हो जाते हैं तथा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल को पार कर जाते है तो व्यक्ति अमर हो जाता है। ऐसे व्यक्ति की देह की मृत्यु के पश्चात भी उसके कर्म और विचार प्रकाश स्तंभ की भाँति पृथ्वी को आलोकित करते हैं । दुनिया में जितने भी महापुरुष हैं, आज अपनी कीर्ति और विचारों से दुनिया को सुशोभित कर रहे हैं तो यह उनके विचारों ओर कर्म की उत्कृष्टता है, ऊर्जा का उच्चतम स्तर है, जिसमें अहंकार का लेश मात्र भी अंश नहीं है। वे विचार पृथ्वी के पलायन वेग को पार कर चुके हैं पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर जा चुके हैं।
स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष जिनके गहन आध्यात्मिक विचारों ओर वेदांत के दर्शन ने अपनी असीम ऊर्जा से पूरे संसार को आलोकित किया और आज भी युवा पीढ़ी के प्रकाश स्तंभ के रूप में अमर हैं तो इसका श्रेय उनकी मानवता के हित में निष्काम कर्म और वैचारिक शक्ति को जाता है। इसी भांति ध्रुवतारा सप्तऋषि मंडल अटल है क्योंकि इन्होंने विचारों की उच्चतम अवस्था को पार कर निर्विचार व निर्द्वंदिता की स्थिति को पार कर लिया है तथा इनके विचार पृथ्वी के पलायन वेग से बाहर निकल गए हैं। ब्रह्मांड में अमरत्व को पा गए हैं।
इसलिए यह विचारों की ताकत ही है जो हमें ऊपर उठाने में मदद करती है। हल्की वस्तु गुरुत्वाकर्षण बल को पार करने में सक्षम है ।यदि सदा ऊंचाई पर पहुंचने के पश्चात वही विद्यमान रहने की लालसा है तो जीवन में मनसा, वाचा और कर्मणा उत्कृष्टता और संपूर्णता को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
जीवन में महापुरुषों की भांति अमरत्व को प्राप्त करना सहज नहीं है लेकिन इनके पदचिन्हों पर चलने का और आने वाली पीढ़ी को अपने संपूर्ण सामर्थ्य के अनुसार मार्गदर्शन करने का प्रयास तो अवश्य करना चाहिए।

रचयिता – बीना नयाल
पिता का नाम -स्वर्गीय दीवान सिंह नयाल
शिक्षा – B.sc , B.Ed , M.A (political science) , M.A (sociology)
दिल्ली शिक्षा विभाग में टीजीटी साइंस के रूप में कार्य कार्यरत

2 Comments

  • Posted January 8, 2023 11:05 am
    by
    Govind Singh Rawat

    Bahut sundar…
    Detail se sab bataya gaya…keep it up
    ..

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