क्योंकि एक पिता हूँ मैं

चिंता से जलती चिता हूँ मैं
देखो, समझो मुझे, एक पिता हूँ मैं।।

ना माँ सा वात्सल्यपूर्ण,
ना बहना का सा दुलार।
ना दादी सा बला वारता,
ना मौसी सा स्नेह-प्यार।
लेकिन मन-मस्तिष्क में,
आस में, हर लक्ष्य में,
तुमको ही जीता हूँ मैं।
क्योंकि एक पिता हूँ मैं।।

आँखें मेरी, लक्ष्य तुम्हारे
विजयी तुम, संघर्ष हमारे।
महारथी तुम, मैं हूँ सारथी,
दृष्टि मेरी लक्ष्य तुम्हारे।
हर सफलता को तुम्हारी,
धागे सा बुनता सदा ही,
फटे पैर सीता हूँ मैं।
क्योंकि एक पिता हूँ मैं।।

देख तुम्हें आनंद मनाता,
अपने घावों को सहलाता।
तुम पर ही सर्वस्व लुटाता,
रूठ के ख़ुद ही मान भी जाता।
गर्वित होकर कभी झूमता,
स्वप्नलोक में मस्त घूमता,
अश्रु कभी पीता हूँ मैं।
क्योंकि एक पिता हूँ मैं।।

दिनेश चंद्र पाठक ‘बशर”

1 Comment

  • Posted June 15, 2022 12:23 pm
    by
    Sarita Pant

    Bahut sunder bhav

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