किरण नेगी के निर्मम बलात्कार और हत्या के संदर्भ में श्रद्धांजलि स्वरुप श्रीमती बीना नयाल जी की रचना।
अब तो विदा कर दो मुझे
गुज़र गया है एक दशक
ज़ख को ना मिला मरहम
चौपाल से लेकर संसद तक
निर्वस्त्र तन्त्र हो गया बेरहम
घायल रूह की अंतिम पुकार
अब तो विदा कर दो मुझे।
तन लुटा मेरा एक बार
आत्मा पर अनगिनत प्रहार
अंधकार से प्रकाश पथ का
अब अख्तियार करने दो मार्ग
जयमाल शोभित जहा अन्यायी कंठ
उस धरा से विदा दे दो मुझे।
थम गया है कारवां उनका
सदा महकती बगिया गुलज़ार
क्षत-विक्षत सपनों की अर्थी पर
अनगिनत लौ हो गई निसार
हुआ अस्त सूर्य न्याय का
अब तो विदा कर दो मुझे।
बुझ गई एक किरण तो क्या
अगणित किरणों को देना आकाश
सम समाज का धरातल बुनना
लूटने न देना फिर अरमान
मद्धम ना हो संकल्प की अग्नि
दे वचन विदा कर दो मुझे।
पराजित न्याय की माटी पर
नव संस्कारों का हो बीजारोपण
अंगारों से भी ना विचलित जो
महिषासुर का स्वयं करे मर्दन
प्रशस्त होने को नव पथ पर
अलविदा अब कह दो मुझे।
युगों युगों के तप की माटी
श्राप कन्या का ना सह पाएगी
छली गई जितनी देहरी पर
प्रकृति काल बन कहर बरपाएगी
नवसृजन की बनने को किरण
आशीष दे विदा कर दो मुझे ।
बीना नयाल
पुत्री स्वर्गीय दीवान सिंह नयाल
सर्वाधिकार सुरक्षित
(विशेष – साहित्यसुधा डॉट इन में प्रकाशित सभी रचनाएं लेखकों की व्यक्तिगत अनुभूति का प्रकटीकरण है। वेबपत्रिका का किसी भी लेखक अथवा कवि के विचारों के साथ सहमत होना आवश्यक नहीं है। यह मात्र विचारों तथा रचनाओं को साझा करने का मंच है। )