गाँव के किनारे जङ्गल में एक विशाल जामुन का वृक्ष था । लंगूर व बन्दर बडे चाव से उसके फल खाते , कभी उसकी टहनी तोडते , खूब उछल-कूद मचाते रहते थे, रात्रि में हिरनों की टोली भी आती और वे शान्त भाव से भूमि पर गिरे जामुनों को बड़े चाव से खाते थे। कभी-कभी भालू दादा भी आ धमकता और जामुन की टहनियां तोड़कर बड़ा उत्पात मचाता। गाँव के बच्चे पत्थर मार-मार कर जामुन गिराते और खाते थे , किन्तु एक गिलहरी जो अपने परिवार के साथ रहती, वह बड़े शान्त भाव से उसके फलों को खाती थी, उसका परिवार इधर -उधर फुदकता और फिर उसी जामुन के वृक्ष पर आ जाता , क्योंकि वहाँ वह अपने को सुरक्षित समझता था। उसे यह तोड़-फोड़ अच्छी नहीं लगती थी।
उसने कई बार जामुन के वृक्ष से कहा भी कि तुम इनकी उदण्डता के लिये इनसे कुछ कहते क्यों नहीं, तब जामुन का वृक्ष कहता कि वे अपने स्वभाव से प्रेरित होकर यह सब करते हैं, किन्तु मैं अपने स्वभाव के कारण सब सह लेता हूँ । धीरे – धीरे वह वृक्ष बूढ़ा होने लगा , किन्तु उसकी सहनशीलता को देख प्रकृति ने उसे सदा (बारहमास) फलते रहने का वरदान दे दिया ।
अब तो लंगूर व बन्दरों ने उस वृक्ष पर डेरा ही जमा लिया और कुछ लोग शहर से आकर उस वृक्ष के मीठे-मीठे जामुन ले जाते और उन्हें बेच कर खूब पैसा बनाते , गिलहरी यह सब देखकर उस वृक्ष के लिये भगवान् से प्रार्थना करती रहती कि हे भगवान् जी इस वृक्ष को सद्गति प्रदान करना।
एक दिन किसी पक्षी की बीट में आया हुआ पीपल का बीज उस जामुन के कोटर में अंकुरित हुआ और धीरे-धीरे बढ़ने लगा और फिर उस पीपल के पौधे ने अपना प्रभाव बढ़ाते हुए उस जामुन के वृक्ष को पीपल के वृक्ष में परिवर्तित कर ही दिया ।
अब जामुन तोड़ने वालों के स्थान पर उस वृक्ष के नीचे चारो ओर एक गोल चबूतरा बन गया , धूप- बाती होने लगी, दिया जलने लगा, और कोई शनिदेव के नाम पर, तो कोई लक्ष्मी जी के नाम पर वहाँ पूजा-अर्चना एवम् भजन- कीर्तन करने लगा । यह सब देखकर गिलहरी मन ही मन भगवान् को धन्यवाद् करती कि हे भगवान् ! इस जामुन ने अपने मीठे फल देकर भी बहुत दुःख सहे थे , और आज आपकी कृपा से पूजा जा रहा है। हे प्रभो! आपकी महिमा अपरम्पार है, जानै सोइ जो जाननिहारा । जय श्रीहरिः
___हीराबल्लभ पाठक “निर्मल”
स्वर साधना संगीत विद्यालय
रामनगर , नैनीताल (उत्तराखण्ड)
2 Comments
Dinesh Chandra Pathak
सुंदर कथानक। सादर प्रणाम।
hirapathak
यशस्वी भव